होलाष्टक शुरू और होलिका दहन 9 मार्च को, इन दिनों में भगवान विष्णु की विशेष पूजा करें

मंगलवार, 3 मार्च से होलाष्टक शुरू हो गए हैं। ये होलिका दहन वाले दिन यानी 9 मार्च तक रहेंगे। इन दिनों में मांगलिक कर्म नहीं किए जाते हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार प्राचीन समय में असुरराज हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से विष्णु भक्त प्रहलाद को यातनाएं देना शुरू की थी। इस दौरान प्रहलाद विष्णुजी का ध्यान करते रहा और यातनाओं का उस पर कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद फाल्गुन पूर्णिमा पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। यहां भी प्रहलाद बच गया और होलिका आग में जल गई। तभी से इस माह की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।


भगवान विष्णु के मंत्र का करें जाप - ऊँ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।


इस विधि से कर सकते हैं विष्णु पूजा


रोज सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनें। इसके बाद घर के मंदिर में गणेशजी का पूजन करें। गणेशजी को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, फूल, चावल चढ़ाएं। गणेशजी के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु का आवाहन करें। आवाहन यानी आमंत्रित करना। भगवान विष्णु को अपने आसन दें। अब भगवान विष्णु को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। दक्षिणावर्ती शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और भगवान का अभिषेक करें।


भगवान को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण और फिर यज्ञोपवित (जनेऊ) पहनाएं। पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें। तिलक करें। तिलक के लिए अष्टगंध का प्रयोग करें। धूप और दीप जलाएं। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है। तुलसी दल अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है। तिल अर्पित कर सकते हैं।


श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक जलाएं। नेवैद्य अर्पित करें। आरती करें। आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। पूजा में विष्णुजी के मंत्र का जाप 108 बार करें।